रजनीगंधा

सामान्य जानकारीATION

रजनीगंधा को "निशीगंधा" और "स्वोर्ड लिल्ली" के नाम से भी जाना जाता है| यह एक सदाबाहार जड़ी बूटी वाला पौधा है जिस में फूल की डंठल 75-100 सैं.मी. लम्बी होती हैजो 10-20 चिमनी के जैसे आकार के सफेद रंग के फूल उत्पन करता है| कट फ्लावर दिखने में आकर्षित, ज्यादा समय के लिए स्टोर करके और मीठी सुगंध वाले होते हैं इसलिए इनकाप्रयोग गुलदस्ते बनाने के लिए किया जाता है| इसके खुले फूलों का प्रयोग मालाऔर वेणी बनाने के लिए किया जाता है| यह बैड और गमलेमें उगाने के लिए उचित है और तेल निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है|

मिट्टी

रेतली और चिकनी और बढ़िया जल-निकास वाली मिट्टी रजनीगंधा की खेती के लिए उचित है| इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 6.5-7.5 होना चाहिए|

ज़मीन की तैयारी

रजनीगंधा की खेती के लिए, ज़मीन को अच्छी तरह से तैयार करें| मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए, 2-3 बार जोताई करना आवश्यक है| रोपण के समय, 10-12 टन रूडी की खाद मिट्टी में मिलाएं|

सिंगल किस्में Calcutta Single: यह सफेद फूल की किस्म है| प्रत्येक डंडी 60 सैं.मी. लम्बी होती है और लगभग 40 फूल देती है| यह मुख्य तौर पर खुले और कट फ्लावर के लिए प्रयोग की जाती है|

Prajwal: यह किस्म आई आई एच आर(इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ हॉर्टिकल्चरल रीसर्च), बैंगलोर द्वारा तैयार की गई है| यह किस्म “Mexican Single” और “Shrinagar” के मेल से तैयार की गई है| इसके फूल की कलियां हल्के गुलाबी रंग की होती हैं जिसमें से सफेद रंग के फूल उत्पन्न होते हैं| यह मुख्य तौर पर खुले और कट फ्लावर के लिए प्रयोग की जाती है|

डबल किस्में

Rajat Rekha: यह किस्म एन बी आर आई(नेशनल बोटैनिकल रीसर्च इंस्टिट्यूट) एन बी आर(नेशनल बोटैनिकल इंस्टिट्यूट), लखनऊ द्वारा तैयार की गई है| इसके फूलों पर सिल्वर और सफेद रंग की धारियां होने के साथ सुरमई रंग की पत्तियां होती हैं|

Pearl double: इसका यह नाम इसके लाल रंग के फूलों के कारण पड़ा, जो मोतियों की तरह होते हैं| इसे कट फ्लावर, खुले फूल और तेल की प्राप्ति के लिए प्रयोग किया जाता है|

Vaibhav: यह किसम आई आई एच आर(इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ हॉर्टिकल्चरल रीसर्च), बैंगलोर द्वारा तैयार की गई है| यह किस्म “Mexican Single” और “IIHR 2” के मेल से तैयार की गई है| इसके फूल की कलियां हल्के हरे रंग की होती हैं जब सफेद रंग के फूल उत्पन्न होते हैं| इसका प्रयोग कट फ्लावर के उदेश्य के लिए किया जाता है|

दूसरे राज्यों की किस्में

सिंगल किस्में: Arka Nirantra, Pune Single, Hyderabad single, Khahikuchi Single, Shrinagar, Phule Rajani, Mexican Single.

डबल किस्में: Hyderabad Double, Calcutta Double.

अर्द्ध- डबल किस्में: Kalyani Double, Suvasini.

रंग-बिरंगी किस्में: Swarna Rekha.

रंग-बिरंगी सिंगल किस्में: Rajat (having white margin).

रंग-बिरंगी डबल किस्में: Dhawal (having golden margin).

बीज की मात्रा
प्रति एकड़ के लिए 2100-2500 गांठों का प्रयोग करें|

उपचार

बिजाई से पहले गांठों को थीरम 0.3% या कप्तान 0.2% या एमीसान 0.2% या बेनलेट 0.2% या बाविस्टिन 0.2% @ 2 के साथ उपचार करें, ताकि मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाया जा सकें|

इस फसल का प्रजनन गांठों द्वारा किया जाता है| 1.5-2.0 सैं.मी. व्यास और 30 ग्राम से ज्यादा भार वाली गांठे प्रजनन के लिए प्रयोग की जाती है| एक तुड़ाई के लिए, एक साल पुरानी फसल की 1 या 2 या 3 गांठे या गांठों के एक गुच्छे को एक जगह पर बोयें और एक साल से ज्यादा पुरानी फसल की 1 या 2 गांठे एक जगह पर बोयें| दोहरी तुड़ाई के लिए एक साल पुरानी फसल की एक गांठ ही बोयें|

बुआई का समय
बिजाई के लिए मार्च-अप्रैल महीने का समय उचित है|

फासला
रोपण के लिए 45 सैं.मी. फासले पर 90 सैं.मी. चौड़े नर्सरी बैड तैयार करें|
 
गहराई

गांठों को 5-7 सैं.मी. गहराई पर मिट्टी में बोयें|

बिजाई का ढंग
बुआई के लिए प्रजनन विधि प्रयोग किया जाता है|

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREASSPMOP
64025060

आर्गेनिक खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

BIO DAPNPKMIX FERTILIZERS
200-300400-500300-400

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGENPHOSPHORUSPOTASH
2964040

खेत की तैयारी के समय 20-25 टन रूड़ी की खाद डालें| खाद के तौर पर फासफोरस 40 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 250 किलो), पोटाश 40 किलो(मिउरेट ऑफ़ पोटाश 60 किलो) प्रति एकड़ में बिजाई के समय डालें|

फसल के विकास के समय, नाइट्रोजन 296 किलो(यूरिया 640 किलो) प्रति एकड़ में डालें| नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई से एक महीना पहले डालें और बाकी की बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा एक महीने के फासले पर अगस्त तक डालें| खादें डालने के बाद, सिंचाई आवश्य करें|

खेत को खरपतवार मुक्त करने के लिए, 3-4 बार हाथों से गोड़ाई करें| नए पौधे लगाने के तुरंत बाद और रोपण के 45 दिनों बाद, ऐट्राजिन 0.6 किलोग्राम प्रति एकड़ या ऑक्सीफ्लोरफेन 0.2 किलोग्राम प्रति एकड़ या पेंडीमैथलीन 800 मि.ली. प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर नदीनों के उगने से पहले पूरे खेत में स्प्रे करें|

गांठों के अंकुरित होने तक कोई सिंचाई ना करें| अंकुरण होने के बाद और 4-6 पत्ते निकलने पर हफ्ते में एक बार सिंचाई करें| मिट्टी और जलवायु के आधार पर, 8-12 सिंचाइयां करनी आवश्यक है|

नाइट्रोजन की कमी: कमी होने के कारण, डंडियां और फूलों की पैदावार कम हो जाती है| पत्तों पर पीले-हरे रंग के हो जाते है|

फासफोरस की कमी: फासफोरस की कमी होने पर, ऊपर वाले पत्ते गहरे हरे रंग के और निचली तरफ के पत्ते जामुनी रंग के हो जाते हैं| इसके लक्ष्ण विकास का रुक जाना और फूलों की गिनती कम होना आदि|

कैल्शियम की कमी: इसकी कमी के कारण डंडियों में दरार पड़ जाती है| कैल्शियम की ज्यादा कमी होने से कली गल जाती है|

मैगनीशियम की कमी: इसके कारण पुराने पत्तों पर पीलापन देखा जा सकता है|

आयरन की कमी: इसके कारण नए पत्तों पर पीलापन देखा जा सकता है|

बोरोन की कमी: इसके कारण फूलों का विकास रुक जाता है, पत्तों में दरारें पड़ जाती हैं और पत्तों का आकार बेढंगा हो जाता है|

मैंगनीज की कमी: इसकी कमी के कारण पत्तों की निचली सतह की नसों पर पीलापन देखा जा सकता है|

पौधे की देखभाल
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तना गलन:

तना गलन: यह सक्लेरोशिअम रोलफसाई के कारण होता है| इसके बीमारी के कारण पत्तों की सतह पर फंगस दिखाई देती है| हरे रंग के धब्बे देखे जा सकते है और पत्ते झड़ जाते है|
उपचार : इसकी रोकथाम के लिए ब्रैसिकोल (20%) 12.5 किलोग्राम प्रति एकड़ मिट्टी में डालें|

धब्बे और झुलस रोग: 

धब्बे और झुलस रोग: यह बीमारी मुख्य तौर पर बरसात के मौसम में फैलती है| इसके कारण फूलों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है और फूल के सरे भाग सूख जाते है|
उपचार: इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के फासले पर स्प्रे करें|
 

चेपा :

चेपा :यह छोटे कीट होते हैं जो फूल की कलियों और नए पत्तों को खाकर नुकसान करते हैं|
उपचार: चेपे की रोकथाम के लिए मैलाथिओन 0.1% @ 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के फासले पर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

थ्रिप्स :

थ्रिप्स : यह फूल की डंठल, पत्तों और फूलों को खाकर पौधे को नुकसान करता है|
उपचार : थ्रीप की रोकथाम के लिए मैलाथिओन 0.1% @ 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

Weevils:

Weevilsयह पौधे के पत्तों और शाखा को प्रभावित करती है| यह पत्तों और जड़ों को शिखर से खाकर पौधे को नुकसान पहुंचाती है|
उपचार : सकी रोकथाम के लिए बेनज़ीन हेक्साक्लोराइड @10% मिट्टी में मिलाएं|

टिड्डे:

टिड्डे:यह नए पत्तों और फूल की कलियों को खाते हैं जिससे पत्तियों और फूलों को नुकसान होता है|
उपचार : इसकी रोकथाम के लिए मैलाथिओन 0.1% या कुइनलफोस 0.05% या कार्बरील 0.2% @ 6 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

कली छेदक

कली छेदक:यह मुख्य तौर पर कलियों पर अंडे देकर उन्हें प्रभावित करते है फिर लार्वा फूल की कलियों को खाता है जिससे कलियों में छेद हो जाते है|
उपचार : इसकी रोकथाम के लिए कार्बारिल 0.2%, 6 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

फसल की कटाई

बिजाई के 3-3.5 महीने बाद फूलों की तुड़ाई की जाती है| इसके फूल खिलने का समय अगस्त-सितंबर महीना होता है| इसकी तुड़ाई निचले 2-3 फूल के खिलने पर करनी चाहिए| डंडियों को तीखे चाकू से काट दें| कट फ्लावर से पहले साल में इसकी औसतन पैदावार से 1.4-2 लाख प्रति एकड़ की और अलग-अलग फूलों से 2.5-4 लाख प्रति एकड़ की कमाई की जा सकती है| दूसरे और अगले साल, इसकी औसतन पैदावार से 2-2.5 लाख प्रति एकड़ की और अलग-अलग फूलों से 4-5 लाख प्रति एकड़ की कमाई की जा सकती है| फूलों की तुड़ाई के बाद, फूलों से डंठले अलग कर दी जाती हैं, और फूलों को बोरियों में या सूती कपड़े में लपेटकर छाव में रखें

खादें


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