टमाटर

सामान्य जानकारीATION

यह भारत की महत्तवपूर्ण व्यापारिक सब्जियों वाली फसल है। यह फसल दुनिया भर में आलू के बाद दूसरे नंबर की सब से महत्तवपूर्ण फसल है। इसे फल की तरह कच्चा और पकाकर भी खाया जा सकता है। यह विटामिन ए, सी, पोटाशियम और अन्य खनिजों का भरपूर स्त्रोत है। इसका प्रयोग जूस, सूप, पाउडर और कैचअप बनाने के लिए भी किया जाता है। इस फसल की प्रमुख पैदावार बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में की जाती है।

जलवायु

सामान्य तापमान

10-26°C

वर्षा

400 - 600mm

बुवाई के समय तापमान

10-15°C

कटाई के समय तापमान

15-25°C

मिट्टी

इस फसल की खेती अलग-अलग मिट्टी की किस्मों में की जा सकती है जैसे कि रेतली, चिकनी, दोमट, काली, लाल मिट्टी, जिसमें पानी के निकास का सही प्रबंध हो। इसकी अच्छी पैदावार के लिए इसे अच्छे निकास वाली रेतली मिट्टी में उत्तम जैविक तत्वों से उगाया जा सकता है। अच्छे निकास वाली मिट्टी की पी एच 7-8.5 होनी चाहिए। यह तेजाबी और खारी मिट्टी में भी उगने योग्य फसल है। ज्यादा तेजाबी मिट्टी में खेती ना करें। अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी लाभदायक है, जबकि अच्छी पैदावार के लिए चिकनी, दोमट और बारीक रेत वाली मिट्टी बहुत अच्छी है।

ज़मीन की तैयारी

टमाटर के बीजों को पहले नर्सरी में बोया जाता है और फिर हन्हें मुख्य खेत में रोपित किया जाता है। मुख्य खेत की तैयार के लिए अच्छी जोताई और समतल मिट्टी की जरूरत होती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 4-5 बार जोताई करें। फिर मिट्टी को समतल करने के लिए सुहागा फेरें। आखिरी जोताई के समय गाय का गला हुआ गोबर 60 किलो को मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। रोपाई के लिए 80-90 सैं.मी. चौड़े बैड तैयार करें।  

Hisar Arun (Selection 7): यह अगेती किस्म है और रोपाई के बाद 70 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फलों की संख्या ज्यादा होती है और फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Amrut (D.V.R.T 1): यह मध्यम फैलने वाली किस्म है। इसके फल मध्यम, गोल होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Anupam: Medium heighted early sowing variety. Fruits are big, round. Gives average yield of 160 qtl/acre.
 
Kashi Vishesh (H -86):  इसके फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं और यह किस्म पत्ता मरोड़ रोग की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 80-100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Pant Bahar: इस किस्म के फल गोल और मध्यम आकार के होते हैं। 
 
Arka Vikas: यह किस्म IIHR, बैंगलोर द्वारा जारी की गई है। यह 120 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
D T 10: इस किस्म का पौधा लंबा और फल मध्यम आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 120-140 क्विंटल प्रति एकड होती है।
 
Arka Saurabh: यह मध्यम ऊंचाई वाली किस्म है। इसके फल बड़े आकार के होते हैं। इस किस्म के फलों में दरारें नहीं पड़ती। इसकी औसतन पैदावार 120-140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Hybrid 2: यह किस्म ICAR, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसके फल चपटे, गोल और मोटे छिल्के वाले होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 220 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Avinash 2: यह मध्यम ऊंचाई वाली किस्म है। इसके फल गोल और गहरे लाल रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 240 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
S.T.H 537: यह हाइब्रिड किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 320 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
ARTH-3: यह किस्म रोपाई के बाद 80-85 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 350-380 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Gotya: यह किस्म रोपाई के बाद 70-75 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 240 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
N.S 815: यह किस्म रोपाई के बाद 75-80 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 240 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
BSS 99: यह लंबी किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 280 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
BSS 40: इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 280 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Toystoll: इस किस्म के फल मध्यम और नाशपाति के आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 280 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Other states variety
 
Pusa Rubi: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म बसंत और सर्दियों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 133 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Early Dwarf: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसके फल मध्यम छोटे और तना पीला होता है। यह किस्म रोपाई के बाद 75-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Chhuhara: इसके फल बीज रहित, नाशपाति के आकार के, लाल और बाहरी मोटी परत के होते हैं। इसकी गुणवत्ता कटाई के बाद 7 दिनों तक मंडी लायक होती है। इसलिए इस किस्म को लंबी दूरी वाले स्थानों और नए उत्पाद बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
 
Pusa 120: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसके फल मध्यम छोटे, नर्म, आकर्षित और तना पीले रंग का होता है। यह किस्म निमाटोड के प्रतिरोधी किस्म है।
 
Roma Selection 120 : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म जड़ गलन के प्रतिरोधी किस्म है। 
 
Rashmi: यह व्यापक रूप से अपनाई गई हाइब्रिड है। इसके फल मध्यम, गोल और आकर्षित होते हैं। यह किस्म सूखा बीमारी के प्रतिरोधी किस्म है।
 
Karnataka Hybrid: इस किस्म की फसल रोपाई के 80 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल लंबे और अंडाकार होते हैं। यह किस्म सूखा और निमाटोड के प्रतिरोधक किस्म है। 
 
Marglobe: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा जारी की गई है। इसके फल बड़े, गोल, नर्म और रसदार होते हैं।
 
HS 101: यह उत्तरी भारत में सर्दियों के समय लगाई जाने वाली किस्म है। इसके पौधे छोटे होते हैं। इस किस्म के टमाटर गोल और दरमियाने आकार के और रसीले होते हैं। यह गुच्छों के रूप में लगते हैं। यह पत्ता मरोड़ बीमारी की रोधक किस्म है। 
 
HS 102: यह किस्म जल्दी पक जाती है। इस किस्म के टमाटर छोटे और दरमियाने आकार के गोल और रसीले होते हैं।
 
Sonali: इस किस्म की औसतन पैदावार 300-320 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Hybrid 1: यह किस्म ICAR, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसकी औसतन पैदावार 128 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 100-160 ग्राम बीज नए पौधे तैयार करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। हाइब्रिड किस्मों के लिए 80-100 ग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से होने वाली बीमारियों और कीड़े मकौड़ों से बचाने के लिए बीजों को बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसके बाद टराइकोडरमा 5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। बीज को छांव में रख दें और फिर बिजाई के लिए प्रयोग करें।
बुआई से एक महीना पहले मिट्टी को धूप में खुला छोड़ दें। आवश्यक लंबाई और 80-90 सैं.मी. की चौड़ाई वाले बैडों पर टमाटर के बीजों को बोयें। बुआई के बाद बैडों को प्लास्टिक शीट से ढक दें और फूलों को पानी देने वाले डब्बे से रोज़ सुबह बैडों की सिंचाई करें। रोगाणुओं के हमले से फसल को बचाने के लिए नर्सरी वाले बैडों को अच्छे नाइलोन के जाल से ढक दें। 
 
नर्सरी लगाने के 10-15 दिन बाद 19:19:19 के साथ सूक्ष्म तत्वों की 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। पौधों को तंदरूस्त और मजबूत बनाने के लिए बिजाई के 20 दिन बाद लीहोसिन 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। प्रभावित पौधों को खेत में से उखाड़ दें ताकि पौधों का फासला सही रखा जा सके और निरोग पौधों को रोगाणुओं से भी बचाया जा सके। रोगाणुओं से बचाव के लिए मिट्टी में नमी बनाये रखें। यदि सूखा दिखे तो पौधों को रोपाई से पहले मैटालैक्सिल 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में 2-3 बार भिगोयें। 
 
बुआई से 25-30 दिन बाद पनीरी वाले पौधे तैयार हो जाते हैं और इनके 3-4 पत्ते निकल आते हैं। यदि पौधों की आयु 30 दिन से ज्यादा हो तो इसके उपचार के बाद इसे खेत में लगायें। पनीरी उखाड़ने के 24 घंटे पहले बैडों को पानी लगायें ताकि पौधे आसानी से उखाड़े जा सकें।
 
फसल को फसल को बैक्टीरियल सूखे से बचाने के लिए रोपाई से पहले नए पौधों को स्ट्रैपटोसाइकलिन घोल 100 पी पी एम में मिलाकर 5 मिनट के लिए भिगोयें।
बुआई का समय
बसंत के मौसम के लिए नर्सरी नवंबर-दिसंबर में तैयार करें जबकि सर्दियों में KE मौसम में सितंबर-अक्तूबर महीने में नर्सरी में बीजों को बोयें।
 
फासला
किस्म और विकास के ढंग मुताबिक 60x30 सैं.मी. या 75x60 सैं.मी. या 75x75 सैं.मी. का फासला रखें। में छोटे कद वाली किस्म के लिए 75x30 सैं.मी. का फासला रखें और वर्षा वाले मौसम के लिए 120-150x30 सैं.मी. का फासला रखें।
 
गहराई
नर्सरी में बीजों को 0-5 सैं.मी. गहराई में बोयें और मिट्टी से ढक दें।  
 
रोपाई का तरीका
इसकी मुख्यतः खेत में रोपाई की जाती है|
 
पंक्तियों में 5-7 सेमी की दूरी पर 1 मीटर की चौड़ाई और 5 मीटर की लंबाई वाले टमाटर पर बीज बोना। बीज की बुवाई से पहले कार्बोफ्यूरान 3 जी @ 10 ग्राम / वर्ग मीटर को नर्सरी मिट्टी में मिलाएं। अंकुर को कीट और रोग के हमले से बचाने के लिए, मनकोजेब @ 2 ग्राम / लीटर पानी का छिड़काव करें। रोपाई के उद्देश्य के लिए चार से पांच सप्ताह का अंकुर यानी 10-15 सेमी ऊंचाई उपयुक्त है।

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREADAP or SSPMOPZINC
90-130 130-16040-50

आर्गेनिक खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

BIO-DAPMIX FERTILIZEROrganic NPK
200 -250100- 150 70- 100

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NP2O5K
40-602525
नाइट्रोजन 40-60 किलो (90-130 किलो यूरिया), फासफोरस 25 किलो (155 किलो एस एस पी) और पोटाश 25 किलो (42 किलो एम ओ पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। नए पौधों की रोपाई के 2-3 सप्ताह पहले फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर रोपाई 30 और 50 दिनों के बाद डालें।
 
WSF: 10-15 days after transplanting, take spray of 19:19:19 along with micronutrient@2.5 to 3 gram/litre of water. Due to low temperature, plant absorb less nutrient and growth get affected. In such cases Foliar spray helps in growth of plants. In vegetative growth stage take spray of 19:19:19 or 12:61:0 @ 3-5 gram/Litre. For better growth and more yield, Spray with 50 ml Brassinolide per acre in 150 litre of water at 40-50 days after transplanting for two times at 10 days intervals.
 
अच्छी क्वालिटी और पैदावार प्राप्त करने के लिए फूल निकलने से पहले 12:61:00 मोनो अमोनियम फासफेट 10 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। जब फूल निकलने शुरू हो जाएं तो शुरूआती दिनों में बोरेन 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह फूल और टमाटर के झड़ने को रोकेगा। कईं बार टमाटरों पर काले धब्बे देखे जा सकते हैं जो कैल्शियम की कमी से होते हैं। इसको रोकने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। अधिक तापमान में फूल गिरते दिखें तो एन ए ए 50 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने पर करें। टमाटर के विकास के समय पोटाश और सलफेट (00:00:50+18S) की 3-5 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। यह टमाटर के विकास और बढ़िया रंग के लिए उपयोगी होती है। टमाटर में दरार आने से इसकी क्वालिटी कम हो जाती है और मूल्य भी 20 प्रतिशत कम हो जाता है। इसे रोकने के लिए चिलेटड बोरेन 200 ग्राम प्रति एकड़ प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे फल पकने के समय करें। पौधे के विकास, फूल और फल को बढ़िया बनाने के लिए बायोज़ाइम धनज़ाइम 3-4 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे महीने में दो बार करें। मिट्टी में नमी बनाई रखें।
 

लगातार गोडाई करें और जड़ों को मिट्टी लगाएं। 45 दिनों तक खेत को नदीन रहित रखें। यदि खरपतवार नियंत्रण से बाहर हो जायें तो यह 70-90 प्रतिशत पैदावार कम कर देंगे। रोपाई से पहले मुख्य खेत में पैंडीमैथालीन 0.4 किलो को प्रति एकड़ में लगाएं। यदि खरपतवारो की संख्या ज्यादा हो तो खरपतवारो के अंकुरण के बाद सैंकर 0.2 किलो की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। नदीनों को रोकने के साथ साथ मिट्टी के तापमान को कम करने के लिए मलचिंग भी प्रभावी तरीका है

रोपाई के बाद दो से तीन दिन हल्की सिंचाई करें। मिट्टी में नमी के आधार पर सर्दियों में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें और गर्मियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फूल निकलने की अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर होती हैं। इस अवस्था में पानी की कमी से फूलों का गिरना बढ़ता है और फलों और उत्पादकता पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। बहुत सारी जांचों के मुताबिक यह पता चला है कि हर पखवाड़े में आधा इंच सिंचाई करने से जड़ें ज्यादा फैलती हैं और इससे पैदावार भी अधिक हो जाती है। अत्याधिक सिंचाई ना करें। 

पौधे की देखभाल
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पत्ते का सुरंगी कीड़ा :

पत्ते का सुरंगी कीड़ा : यह कीट पत्तों को खाते हैं और पत्ते में टेढी मेढी सुरंगे बना देते हैं। यह फल बनने और प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर भी असर करता है।

शुरूआती समय में नीम सीड करनल एक्सट्रैक्ट 5 प्रतिशत 50 ग्राम लीटर पानी की स्प्रे करें। इस कीड़े पर नियंत्रण करने के लिए डाईमैथोएट 30 ई सी 250 मि.ली.या स्पीनोसैड 80 मि.ली.में 200 लीटर पानी या ट्राइज़ोफोस 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।

सफेद मक्खी:

सफेद मक्खी: यह पत्तों में से रस चूसकर पौधों को कमज़ोर बनाती है। यह शहद की बूंद की तरह के पत्तों पर काले धब्बे छोड़ती है। यह पत्ता मरोड़ बीमारी का भी कारण बनते हैं।

नर्सरी में बीजों की बिजाई के बाद, बैड को 400 मैस के नाइलोन जाल के साथ या पतले सफेद कपड़े से ढक दें। यह पौधों को कीड़ों के हमले से बचाता है। इनके हमले को मापने के लिए पीले फीरोमोन कार्ड प्रयोग करें, जिनमें ग्रीस और चिपकने वाला तेल लगा हों सफेद मक्खी को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को जड़ों से उखाड़कर नष्ट कर दें। ज्यादा हमला होने पर एसिटामिप्रिड 20 एस पी 80 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी या ट्राइज़ोफोस 250 मि.ली.प्रति 200 लीटर या प्रोफैनोफोस 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह स्प्रे 15 दिन बाद दोबारा

थ्रिप्स : 

थ्रिप्स : यह टमाटरों में आम पाया जाने वाला कीट है। यह विशेष कर शुष्क मौसम में पाया जाता है। यह पत्तों का रस चूसता है, जिस कारण पत्ते मुड़ जाते हैं। पत्तों का आकार कप की तरह हो जाता है और यह ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं। इससे फूल झड़ने भी शुरू हो जाते हैं।

इनकी गिणती देखने के लिए स्टीकी ट्रैप 6-8 प्रति एकड़ में लगाएं। इन्हें रोकने के लिए वर्टीसीलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि थ्रिप की मात्रा ज्यादा हो तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल @60 मि.ली या फिप्रोनिल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी या फिप्रोनिल 80 प्रतिशत डब्लयु पी 2.5 मि.ली.प्रति लीटर पानी या एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी 600 ग्राम प्रति 200 लीटर या स्पाइनोसैड 80 मि.ली.प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फल छेदक :

फल छेदक :यह टमाटर का मुख्य कीट है। यह हेलीकोवेरपा के कारण होता है, जिसे सही समय पर यदि कंटरोल ना किया जाये तो यह 22-37 प्रतिशत तक फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह पत्ते, फूल और फल खाता है। यह फलों पर गोल छेद बनाता है और इसके गुद्दे को खाता है।

शुरूआती नुकसान के समय इसके लारवे को हाथों से भी इकट्ठा किया जा सकता है। शुरूआती समय में HNPV या नीम के पत्तों का घोल 50 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल बेधक को रोकने के लिए फेरोमोन कार्ड बराबर दूरी पर पनीरी लगाने के 20 दिनों के बाद लगाएं प्रभावित हिस्सों को नष्ट कर दें। यदि कीड़ों की गिणती ज्यादा हो तो सपानोसैड 80 मि.ली.+ स्टिकर 400 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें। शाख और फल बेधक को रोकने के लिए कोराज़न 60 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।

जुंएं :

जुंएं : यह एक खतरनाक कीड़ा है जो 80 प्रतिशत तक पैदावार कम कर देता है। यह कीट पूरे संसार में फैला हुआ है। यह पत्तों को नीचे की ओर से खाता है। प्रभावित पत्ते कप के आकार में नज़र आते हैं। इसका हमला बढ़ने से पत्ते सूखने और झड़ने लग जाते हैं और शाखाएं नंगी हो जाती हैं।

यदि खेत में पीली जुंएं और थ्रिप का हमला देखा जाये तो क्लोफैनापियर 15 मि.ली.प्रति 10 लीटर, एबामैक्टिन 15 मि.ली.10 लीटर या फैनाज़ाकुइन 100 मि.ली.प्रति 100 लीटर असरदार सिद्ध होगा। अच्छे नियंत्रण के लिए स्पाइरोमैसीफेन 22.9 एस सी 200 मि.ली.प्रति एकड़ प्रति 180 लीटर पानी की स्प्रे करें।

फल का गलना :

फल का गलना : यह टमाटर की प्रमुख बीमारी है जो मौसम के परिवर्तन के कारण होती है। टमाटरों पर पानी के फैलाव जैसे धब्बे बन जाते हैं। फल गलने के कारण बाद में यह काले और भूरे रंग में बदल जाते हैं।

बिजाई से पहले बीजों को ट्राइकोडरमा 5-10 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम या थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो प्रभावित और नीचे गिरे हुए फल और पत्ते इकट्ठे करके नष्ट कर दें। यह बीमारी ज्यादातर बादलवाइ वाले मौसम में पाई जाती है, इसे रोकने के लिए मैनकोज़ेब 400 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 300 ग्राम या क्लोरोथैलोनिल 250 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह स्प्रे 15 दिन बाद दोबारा करें।

ऐंथ्राक्नोस:

एंथ्राक्नोस : गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाली स्थिति में यह बीमारी ज्यादा फैलती है। इस बीमारी से पौधे के प्रभावित हिस्सों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। यह धब्बे आमतौर पर गोलाकार, पानी के साथ भीगे हुए और काली धारियों वाले होते हैं। जिन फलों पर ज्यादा धब्बे हों वे पकने से पहले ही झड़ जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है।

यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो इसे रोकने के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल या हैक्साकोनाज़ोल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।

झुलस रोग :

झुलस रोग : यह टमाटर की खेती में आम पाई जाने वाली प्रमुख बीमारी है। शुरू में पत्तों पर छोटे भूरे धब्बे होते हैं। बाद में ये धब्बे तने और फल के ऊपर भी दिखाई देते हैं। पूरी तरह विकसित धब्बे भद्दे और गहरे भूरे हो जाते हैं जिनके बीच में गोल सुराख होते हैं। ज्यादा हमला होने पर इसके पत्ते झड़ जाते हैं।

यदि इसका हमला देखा जाये तो मैनकोज़ेब 400 ग्राम या टैबूकोनाज़ोल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर की स्प्रे करें। पहली स्प्रे से 10-15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें। बादलवाइ वाले मौसम में इसके फैलने का ज्यादा खतरा होता है। इसे रोकने के लिए क्लोरोथैलोनिल 250 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी की स्प्रे करें। अचानक होने वाली वर्षा भी इस बीमारी के बढ़ने में मदद करती है, इसे रोकने के लिए कॉपर वाले फंगसनाशी 300 ग्राम प्रति लीटर+ स्ट्रैपटोसाइकलिन 6 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।

मुरझाना और पत्तों का झड़ना :

मुरझाना और पत्तों का झड़ना : यह बीमारी नमी वाली या बुरे निकास वाली मिट्टी में होती है। यह मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारी है। इससे तना पानी में डुबोने से मुरझाया हुआ दिखता है और मुरझाना शुरू हो जाता है। इससे पौधे निकलने से पहले ही मर जाते हैं। यदि यह बीमारी नर्सरी में आ जाये तो यह सारे पौधों को नष्ट कर देती है।

जड़ों के गलने से रोकने के लिए 1 प्रतिशत यूरिया 100 ग्राम प्रति 10 लीटर और कॉपर आक्सी क्लोराइड 250 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी को मिट्टी में मिलाएं। पौधे को मुरझाने से बचाने के लिए नजदीक की मिट्टी में कॉपर आक्सी क्लोराइड 250 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी मिलाएं। ज्यादा पानी देने से तापमान और नमी में वृद्धि हो जाती है, जिससे जड़ें गलने का खतरा बढ़ जाता है। इसे रोकने के लिए ट्राइकोडरमा 2 किलो प्रति एकड़ को रूड़ी के साथ पौधे की जड़ों के नजदीक डालें। मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम.प्रति लीटर या बोरडो मिक्स 10 ग्राम प्रति लीटर को मिट्टी में मिलाएं। इससे एक महीने बाद 2 किलो ट्राइकोडरमा प्रति एकड़ को 100 किलो रूड़ी में मिलाकर डालें।

 

पत्तों का धब्बा रोग:

पत्तों का धब्बा रोग: इस बीमारी से पत्तों के निचली ओर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। यह बीमारी पौधे को भोजन के रूप में प्रयोग करती है। जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यह आमतौर पर पुराने पत्तों पर फल बनने में थोड़ा समय पहले या फल बनने के समय हमला करती है। पर यह फसल के विकास के समय किसी भी स्थिति में हमला कर सकती है। ज्यादा हमले की स्थिति में पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं।

खेत में पानी ना खडा होने दें और खेत की सफाई रखें। बीमारी को रोकने के लिए हैकसा कोनाज़ोल के साथ स्टिकर 1 मि.ली.प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। अचानक वर्षा की स्थिति में इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। धीरे-धीरे हो रहे नुकसान की स्थिति में पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की 2-3 बार 10 दिनों के फासले पर स्प्रे करें।

फसल की कटाई

नर्सरी लगाने के 70 दिन बाद पौधे फल देना शुरू कर देते हैं। कटाई का समय इस बात पर निर्भर करता है कि फलों को दूरी वाले स्थानों पर लेकर जाना है या ताजे फलों को मंडी में ही बेचना है आदि। पके हरे टमाटर जिनका 1/4 भाग गुलाबी रंग का हो, लंबी दूरी वाले स्थानों पर लेकर जाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। ज्यादातर सारे फल गुलाबी या लाल रंग में बदल जाते हैं, पर सख्त गुद्दे वाले टमाटरों को नज़दीक की मंडी में बेचा जा सकता है। अन्य उत्पाद बनाने और बीज तैयार करने के लिए पूरी तरह पके और नर्म गुद्दे वाले टमाटरों का प्रयोग किया जाता है।

फसल की कटाई

कटाई के बाद आकार के आधार पर टमाटरों को छांट लिया जाता है। इसके बाद टमाटरों को बांस की टोकरियों या लकड़ी के बक्सों में पैक कर लिया जाता है। लंबी दूरी पर लिजाने के लिए टमाटरों को पहले ठंडा रखें ताकि इनके खराब होने की संभावना कम हो जाये। पूरी तरह पके टमाटरों से जूस, सीरप और कैचअप आदि उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं।

खादें


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