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अरबी
अरबी
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सामान्य जानकारीATION
यह एक सदाबाहर जड़ी-बूटी वाला पौधा है जो उष्ण और उप-उष्ण क्षेत्रों में उगाया जाता है| इस किस्म के विकास के लिए गर्मी के मौसम की आवश्यकता होती है| इसकी पैदावार का मुख्य कारण खानेयोग्य मीठे और स्टार्ची फल है| अरवी को तारो भी बोला जाता है और तारो की जड़ों को "ईडो", 'दाशीन" और "कालो" के नाम से भी जाना जाता है| इसका पौधा 1-2 मीटर का होता है| इसके पत्तों का रंग हल्का हरा और लम्बे और दिल के आकार के होते है| यह सेहत के लिए लाभदायक होती है, क्योंकि इससे कैंसर, ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां, शुगर, पाचन क्रिया, त्वचा और तेज़ नज़र करने के लिए दवाईयां तैयार की जाती है| यह भारत में पंजाब, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, आसाम, गुजरात, महाराष्ट्र, केरला, आंध्रा प्रदेश, उत्तराखंड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक और तेलंगाना आदि उगाने वाले मुख्य क्षेत्र है|
मिट्टी
अरवी की खेती कई प्रकार की मिट्टी जैसे कि रेतली से दोमट मिट्टी में की जाती है, पर यह रेतली दोमट या जैविक तत्वों की भरपूर मात्रा वाली मिट्टी में उगाने पर बढ़िया परिणाम देती है| घटिया निकास वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें| कम ऊपजाऊ और नमी वाली मिट्टी इसकी पैदावार को कम कर देती है|
ज़मीन की तैयारी
अरवी की खेती के लिए, ज़मीन को अच्छी तरह से तैयार करें| खेत को भुरभुरा करने के लिए, बिजाई से पहले खेत की 2-3 बार जोताई करें और उसके बाद सुहागा फेरें| खेत को नदीन-मुक्त रखें|
Punjab Arvi-1: यह किस्म 2009 में विकसित की गई| इसके पौधे लम्बे कद के और हरे पत्तों वाले, जो तिरछे सीधे और आकार में बढ़े होते है| इसके फल सामान्य मोटे और लम्बे होते है| इसके फल भूरे रंग के और गुद्दा अंदर से क्रीम रंग का होता है| यह किस्म 175 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 90 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
दूसरे राज्यों की किस्में
Sree Pallavi, Sree Kiran, Sree Rashmi, Satamukhi (Kovvur), Co1 and Panchamukhi are the popular varieties for Arvi.
बीज की मात्रा
प्रति एकड़ खेत में 300-400 किलो गांठों का प्रयोग करें|
उपचार
बीज के उपचार के लिए बविस्टीन के 2% घोल में 30 मिनट के लिए गांठों को भिगोएं| यह गांठों को मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारीयों से बचाता है
बुआई का समय
पंजाब में उचित पैदावार के लिए, फरवरी महीने के पहले पखवाड़े में गांठों को नर्सरी बैडों पर बोयें|
फासला
पंक्ति से पंक्ति में 60x15 या 45 x 20 सैं.मी. का फासला रखें|
गहराई
गांठों को 6-7.5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें|
बिजाई का ढंग
गांठो की हाथों से बिजाई की जाती है| बीजों को मिट्टी में गहराई से बोया जाता है| गांठों की बिजाई गड्डे खोद कर की जाती है| इसके इलावा इसकी बिजाई आलुओं की तरह मशीन से भी की जा सकती है।
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | DAP or SSP | MOP | ZINC | |
70 | 150 | 40 | – |
आर्गेनिक खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
BIO-DAP | MIX FERTILIZER | Organic NPK | |
150 | 100 | 100 |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
N | P2O5 | K |
32 | 24 | 24 |
बिजाई से पहले, गली हुई रूड़ी की खाद 40-62.5 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें| शुरुआती खाद के तौर पर यूरिया 90 किलो, सिंगल सुपर फासफेट 125 किलो और मिउरेट ऑफ़ पोटाश 35 किलो प्रति एकड़ डालें|
बिजाई के समय पोटाशियम और फासफोरस की पूरी मात्रा डालें| पहली बिजाई के समय नाइट्रोजन की मात्रा दो हिस्सों में डालें और बाकी की बची हुई मात्रा गोड़ाई, निराई और मिट्टी चढ़ाने के समय डालें|
खेत को खरपतवार मुक्त करने के लिए, 1-2 कसी से गोड़ाई करें और हर एक गोड़ाई के बाद जड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं|
जरूरत से पहले सिंचाई फसल की बढ़िया पैदावार के लिए बहुत लाभदायक होती है| गर्मीयों में, सिंचाई 3-4 दिनों के फासले पर करें और बारिश के मौसम में, सिंचाई की जरूरत नहीं होती, पर कई बार आवश्यकता अनुसार जीवन रक्षक के लिए सिंचाई जरूरी होती है| इस फसल को नियमित अंकुरण के लिए स्थिर सिंचाई की आवश्यकता होती है| इसलिए बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें| बीजों के अंकुरण तक खेत में नमी बनाये रखें|
पौधे की देखभाल
 
पत्ता झुलस रोग:

पत्ता झुलस रोग: यह बीमारी का हमला मुख्य तौर पर बारिश की ऋतु में रात का तापमान 20-22° सै. और दिन का 25-28° सै. होने पर होता है| इससे पत्तों पर पानी के गोल धब्बे बन जाते है, जो सूखने के बाद पीले और गहरे जामुनी रंग के हो जाते हैं|
उपचार : पत्ते के झुलस रोग की रोकथाम के लिए, डीथेन एम-45 @400-500 ग्राम को 100-150 लीटर पानी में मिला कर 7-14 दिनों के फासले पर प्रति एकड़ में स्प्रे करें|
एलोमाई/ बोबोन वायरस:

दाशीन का चितकबरा रोग:

उपचार : इसकी रोकथाम के लिए अरवी की अलग-अलग किस्में उगाएं|
गांठों का गलना:

उपचार : यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम या एम 45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
कीटों का हमला:

कीटों का हमला:यह बीजों पर हमला करते हैंऔर बीज उत्पादन को नुकसान पहुंचाते हैं|
उपचार : इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई सी @250 मि.ली. का प्रयोग करें|
फसल की कटाई
इस फसल की पुटाई पत्ते पीले पड़ने पर बिजाई के बाद 175-200 दिनों में की जा सकती हैं| नर्म अरवी की पुटाई के लिए, अगेती पुटाई करें| पुटाई के काम को ज्यादा आसान करने के लिए खेत को अच्छी तरह से पानी लगाएं| इसकी पुटाई कसी या हाथ वाले औज़ारों के साथ की जा सकती हैं| पुटाई के बाद अरवी को साफ किया जाता है और फिर छंटाई की जाती है
कटाई के बाद
पुटाई के बाद अरवी को ठंडी और शुष्क जगह पर बीज उत्पादन के लिए स्टोर कर लिया जाता है| ठंडी और शुष्क जगह पर स्टोर करने से अरवी को गलन रोग से बचाया जाता है| अरवी को कोल्ड स्टोर या गड्डों में भी स्टोर किया जा सकता है|