शकरकंदी

सामान्य जानकारीATION

शकरकंदी का वानस्पतिक नाम ईपोमोइया बटाटस हैं| यह फसल मुख्य रूप से अपने मीठे स्वाद और स्टार्ची जड़ों के लिए उगाई जाती है। इसकी गांठे बीटा-केरोटीन की स्त्रोत होती है और ऐंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में प्रयोग की जाती है| यह जड़ी-बूटी वाली सदाबहार बेल है, जिसके पत्ते हिस्सो में बंटे हुए या दिल के आकार के होते हैं| इसके फल खानेयोग्य, मुलायम छिलके वाले, पतले और लम्बे होते है| इसके फलों के छिलके का रंग अलग-अलग, जैसे की जामुनी, भूरा, सफेद होता है और इसका गुद्दा पीला, संतरी, सफेद और जामुनी होता है|

शकरकंदी दिल के लिए अच्छी है। यह रक्तचाप को नियंत्रित करती है और तनाव से राहत दिलाने में भी मदद करता है।

भारत में लगभग 2 लाख हैक्टेयर ज़मीन पर शकरकंदी उगाई जाती है| बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा आदि भारत के मुख्य शकरकंदी उगाने वाले राज्य हैं|

उत्तर प्रदेश में लगभग 331 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र में शकरकंदी की खेती की जाती है और कुल उत्पादन में इसका हिस्सा 27 प्रतिशत है। यू पी के ईटाह, बदौर, फारूखाबाद और सुल्तानपुर मुख्य शकरकंदी उगाने वाले क्षेत्र हैं।

जलवायु

सामान्य तापमान

26-30°C

वर्षा

750 - 1200 mm

मिट्टी

यह बहुत किस्म की मिट्टी जैसे की रेतली से दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है, पर यह ज्यादा उपजाऊ और अच्छे निकास वाली मिट्टी में बढिया पैदावार देती है| इसकी खेती हल्की रेतली और भारी चिकनी मिट्टी में ना करें, क्योंकि इसमें गांठों का विकास अच्छी तरह से नहीं होता हैं| इसके लिए मिट्टी का pH 5.8-6.7 होना चाहिए|

ज़मीन की तैयारी

शकरकंदी की खेती के लिए, खेत को अच्छी तरह से तैयार करें| मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए, बिजाई से पहले खेत की 3-4 बार 15-20 सैं.मी. की गहराई परजोताई करें, फिर सुहागा फेरें| खेत को नदीन मुक्त रखना चाहिए| बिजाई के लिए मेंड़, खालियां या समतल बैड ढंग प्रयोग किये जाते हैं। खेत में पानी के निकास की समस्या होने के कारण, रोपाई के लिए मेंड़ का प्रयोग किया जाता है और जहां भूमि कटाव की समस्या होती है वहां रोपाई के लिए मेंड़ और खालियों का प्रयोग किया जाता है।

Kiran: यह किस्म 110-120 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। यह फैलने वाली किस्म है। इसकी गांठे लाल रंग के छिल्के वाली और संतरी गुद्दे वाली होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 8-10 टन प्रति एकड़ होती है।

Rajendra Sakarkand 5: यह किस्म 105-120 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी गांठे सफेद रंग के छिल्के और गुद्दे वाली होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 9-12 टन प्रति एकड़ होती है।

Rajendra Sakarkand 35: यह किस्म 105-120 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी गांठे भूरे रंग के छिल्के और गुद्दे वाली होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 10-12 टन प्रति एकड़ होती है।

Rajendra Sakarkand 47: यह किस्म 120-130 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी गांठे लाल रंग के छिल्के और सफेद गुद्दे वाली होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 10-12.8 टन प्रति एकड़ होती है।

VL-Sankarkand 6: यह देरी से पकने वाली किस्म है। यह किस्म 135-140 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी गांठे जामुनी रंग के छिल्के और हल्के पीले रंग के गुद्दे वाली होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 8.0 टन प्रति एकड़ होती है।

Samrat: यह किस्म 110-120 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी गांठे हल्के गुलाबी रंग की और सफेद गुद्दे वाली होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 8.0 टन प्रति एकड़ होती है।

Shree Bhadra: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। इसकी गांठे हल्के गुलाबी रंग की और क्रीमी गुद्दे वाली होती हैं। यह किस्म 90 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 8.0 टन प्रति एकड़ होती है।

Narendra shakarkand 9: यह किस्म 120 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है इसकी गांठों का छिल्का और गुद्दा सफेद रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 11 टन प्रति एकड़ होती है।

Narendra Shakarkand 10: यह मध्य मौसम की किस्म है। यह किस्म 120 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी गांठे लाल छिल्के वाली और सफेद गुद्दे वाली होत हैं। इसकी औसतन पैदावार 9 टन प्रति एकड़ होती है।

Pusa Red: इस किस्म की गांठे लाल रंग की होती हैं जिनका गुद्दा सफेद रंग का होता है। गांठे मध्यम आकार की होती है जो बीच में से मोटी होती हैं।

Pusa White: इस किस्म का गांठे और गुद्दा सफेद रंग का होता है। गांठे मध्यम आकार की होती हैं। यह अधिक उपज देने वाली किस्म है। दूसरे राज्यों की किस्में

Punjab Sweet Potato-21: इस किस्म की बेल की लम्बाई दरमियानी होती है| इसके पत्तों का आकार चौड़ा और रंग गहरा हरा, तना लम्बा और मोटा, इसकी डंडी लम्बी 4.5 सैं.मी. और पत्तों की लम्बाई 9 सैं.मी. होती है| इसके फल गहरे लाल रंग के होते है, जो 20 सैं.मी. लम्बे और 4 सैं.मी. चौड़े होते है और इनका गुद्दा सफेद रंग का होता है| यह किस्म 145 दिनों में पक जाती हैं| इनके फलों का औसतन भार 75 ग्राम होता है| इसके फल में 35 % सूखा पदार्थ और 81 मि. ली. प्रति ग्राम स्टार्च की मात्रा होती हैं| इसकी औसतन पैदावार 75 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैं|

Varsha: यह किस्म महाराष्ट्र में उगाने की सिफारिश की जाती है| यह बारिश की ऋतु में उगाने के लिए अनुकूल है| इसकी औसतन पैदावार 62.5 किलो प्रति एकड़ होती हैं|

Konkan Ashwini: यह किस्म महाराष्ट्र में उगाने के लिए तैयार की गई है| यह कम समय वाली फसल है और ज्यादा पैदावार देती है|

Sree Arun: यह जल्दी पकने वाली किस्म हैं जिसका छिलका गुलाबी और गुद्दा क्रीम रंग का होता है| यह किस्म सैंट्रल ट्यूबर क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट(सी टी सी आर आई), श्रीकरियम द्वारा तैयार की गई है| इसकी औसतन पैदावार 83-116 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैं|

Sree Kanaka: यह किस्म सैंट्रल ट्यूबर क्रॉप रीसर्च ਇੰਸਟੀਟਿਊਟ (सी टी सी आर), श्रीक्रियम द्वारा तैयार की गई है| इसका छिलका क्रीम रंग का होता है और गुद्दा गहरे संतरी रंग का होता है| इसकी औसतन पैदावार 41-62.5 किलो प्रति एकड़ होती है|

Sree Varun: यह किस्म सैंट्रल ट्यूबर क्रॉप रीसर्च ਇੰਸਟੀਟਿਊਟ (सी टी सी आर), श्रीक्रियम द्वारा तैयार की गई है| इसका छिलका क्रीम रंग का होता है| यह जल्दी पकने वाली फसल है, जो 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 80-100 किलो प्रति एकड़ होती है|

Gautam: यह किस्म 105-110 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 12 टन प्रति एकड़ होती है।

Sourin: यह किस्म यह किस्म 105-110 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 12 टन प्रति एकड़ होती है। इस किस्म की लाल गांठे और क्रीमी गुद्दा होता है।

Kishan: यह किस्म 110-120 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 12 टन प्रति एकड़ होती है।

उन्नत किस्में
H-41, H-42, Co 3, Co CIP 1, Sree Vardhini, Sree Rethna, Sree Nandini, Kanjanghad, Gouri, Sankar.

बीज की मात्रा
एक एकड़ में 60x20-30 सैं.मी. फासले के साथ लगभग 30000-33000 पौधे लगाए जाते हैं। एक एकड़ खेत के लिए, बेल की कटिंग लेने के लिए 40 किलो गांठों की आवश्यकता होती है जिनका वजन लगभग 125-150 ग्राम हो।

उपचार
गांठों को प्लास्टिक बैग में डाल कर सल्फयूरिक एसिड में 10-40 मिनट के लिए भिगोये|

प्रजनन मुख्य तौर पर गांठों का या बेल की कटिंग का प्रयोग किया जाता है। बेल की कटिंग विधि में के तैयार नर्सरी बैडों पर गांठों की रोपाई की जाती है। दूसरे शब्दों में मेंड़ों पर 20-30 सैं.मी. के फासले पर और कतारों में 60 सैं.मी. के फासले पर रोपाई की जाती है। रोपाई के 15 दिन बाद यूरिया 1.5 किलो प्रति 100 वर्गमीटर में डालें। पहले 10 दिन, 1 दिन छोड़कर सिंचाई करें। उसके बाद सिंचाई की आवृति कम कर दें। 45 दिनों के बाद 20-30 सैं.मी. लंबी बेल काटें। फिर इन्हें दूसरी 500 वर्गमीटर की दूसरी नर्सरी में रोपण कर दें।

ताजी काटी हुई बेलों को मेंड़ों पर बोयें जिनका कतारों में फासला 60 सैं.मी. और पौधों में 20 सैं.मी. का फासला हो। गाय का गला हुआ गोबर 1 किलो प्रति 500 वर्गमीटर में डालें। फिर रोपाई के बाद यूरिया 2.5 किलो 15वें और 30वें दिन डालें। शुरूआती तीन दिनों में रोज़ सिंचाई करें फिर सप्ताह में एक दिन छोड़कर सिंचाई करें। उसके बाद सिंचाई की आवृत्ति घटा दें। 40-45 दिनों के बाद बेलें मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाती हैं।

ज्यादातर बेल के ऊपरी हिस्से की कटिंग का प्रयोग किया जाता है क्योंकि ये अधिक उपज देते हैं। 3-5 गांठों वाली और 20-40 सैं.मी. लंबी बेल का प्रयोग रोपाई के लिए किया जाता है। मुख्य खेत में इन बेलों को मेंड़ों पर या समतल बैडों पर सिफारिश किए गए फासले पर रोपित किया जाता है। मिट्टी में बेल की कटिंग के बीच वाले हिस्से को बोयें।

बुआई का समय
खरीफ के मौसम के लिए, जून जुलाई का समय बेलों की रोपाई के लिए उपयुक्त होता है। निचले क्षेत्रों के लिए, जनवरी से फरवरी जबकि ऊंचे क्षेत्रों के लिए अक्तूबर-नवंबर का समय रोपाई के लिए उपयुक्त होता है।

फासला

कतार से कतार में 60 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 20-30 सैं.मी. का फासला रखें|

बिजाई का ढंग

मुख्य खेत में बेल की कटिंग का प्रयोग किया जाता है।

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREADAP or SSPMOPZINC
35-55 12530-40

आर्गेनिक खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

BIO-DAPMIX FERTILIZEROrganic NPK
100 -15050- 100 70- 100

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NP2O5K
20-2525- 3540 – 50

Well decomposed cow dung@10 tonnes per acre is mixed before 2-3 weeks of transplanting at the time of land preparation. Overall it required Fertilizer dose of Nitrogen@16-24 kg/acre (Urea@35-55 kg), phosphorus@20 kg (SSP@125 kg) and potash@16-24 kg/acre (MOP@30-40kg). Full dose of Phosphorus and half dose of nitrogen and potash are added at the time of transplanting. Rest of the dose of nitrogen is added after 1 month of transplanting.

 
 
 

खरपतवारो के अंकुरण से पहले मैट्रीब्यूज़िन 70 डब्लयू पी 200 ग्राम या ऐलाक्लोर 2 लीटर प्रति एकड़ डालें| केवल 5-10% अंकुरण और मेंड़ पर खरपतवार का हमला होने पर पैराकुएट 500-750 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें|

बुआई के बाद, पहले 10 दिन हर 2 हफ्ते में एक बार सिंचाई करें और फिर 7-10 दिनों में एक बार सिंचाई करें| पुटाई से 3 हफ्ते पहले सिंचाई करना बंद कर दें| पर पुटाई से 2 दिन पहले एक सिंचाई जरूरी होती है|

पौधे की देखभाल
&nbsp

अगेता झुलस रोग :

अगेता झुलस रोग : इससे नीचे के पत्तों पर धब्बे पड़ जाते हैं। यह बीमारी मिट्टी में स्थित फंगस के कारण आती है। कम तापमान और अधिक नमी होने के समय यह बीमारी तेजी से फैलती है।

इसकी रोकथाम के लिए एक फसल खेत में बार-बार उगने की बजाएं फसली-चक्र अपनाएं| अगर इसका हमला दिखाई दें तो, मैनकोजेब 30 ग्राम या कॉपर आक्सीक्लोराइड 30 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलकर बिजाई से 45 दिन बाद 10 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें|

कुतरा सुंडी : 

कुतरा सुंडी : यह सुंडी पौधे को अंकुरन के समय काटकर नुकसान पहुंचाती हैं। यह रात के समय हमला करती है, इसलिए इसे रोकना मुश्किल है।

इसके नुकसान को कम करने के लिए रूड़ी की खाद का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई सी 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। पौधों पर फोरेट 10 जी 4 किलो प्रति एकड़ डालें और मिट्टी से ढक दें।

यदि तंबाकू सुंडी का हमला दिखे तो रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 25 ई सी 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।

अगेता झुलस रोग:

अगेता झुलस रोग: इस बीमारी से निचले पत्तों पर गोल धब्बे पड़ जाते है| यह मिटटी में फंगस के कारण फैलती है| यह ज्यादा नमी और कम तापमान में तेज़ी से फैलता है|

इसकी रोकथाम के लिए एक फसल खेत में बार-बार उगने की बजाएं फसली-चक्र अपनाएं| अगर इसका हमला दिखाई दें तो, मैनकोजेब 30 ग्राम या कॉपर आक्सीक्लोराइड 30 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलकर बिजाई से 45 दिन बाद 10 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें|

पिछेता झुलस रोग : 

पिछेता झुलस रोग : इस बीमारी का हमला पत्तों के शिखरों और नीचे के भाग पर देखा जा सकता है। प्रभावित पत्तों पर बेढंगे आकार के धब्बे दिखते हैं और धब्बों के आस पास सफेद पाउडर बन जाता है। ज्यादा हमले की सूरत में प्रभावित पौधों की नज़दीक की मिट्टी में सफेद पाउडर दिखाई देता है। यह बीमारी बारिश के बाद और बादलवाई वाले मौसम में अधिक फैलती है। यदि इसे ना रोका जाये तो 50 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

इसकी रोकथाम के लिए एक फसल खेत में बार-बार उगने की बजाएं फसली-चक्र अपनाएं| अगर इसका हमला दिखाई दें तो, मैनकोजेब 30 ग्राम या कॉपर आक्सीक्लोराइड 30 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलकर बिजाई से 45 दिन बाद 10 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें|

शकरकंदी की भुंडी:

शकरकंदी की भुंडी: यह पत्तों और बेल के बाहरी परत को अपना भोजन बनाकर नुकसान पहुचांते है|
 
रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए 200 मि.ली.रोगोर को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें|

फल का पतंगा:

फल का पतंगा:यह खेत और स्टोर में हमला करने वाला मुख्य कीट है| यह फलों में सुरंग बनाकर गुद्दे को खाता है|

इसकी रोकथाम के लिए बीमारी-मुकत बीजों का प्रयोग करें और पूरी तरह से गला-सड़ा हुआ गोबर डालें| अगर इसका हमला दिखाई दें तो, कार्बरील 1 ग्राम प्रति लीटर में डालें|

चेपा:

चेपा: यह छोटे और बड़े कीट रस चूस कर पौधे को कमज़ोर कर देती है| इसके गंभीर हमले से पत्ते मुड़ जाते है और आकार बदल जाता है| यह शहद की बूंद जैसा पदार्थ छोड़ते है और प्रभावीर भागों पर काली, सफेद फंगस पैदा हो जाती है|

चेपे के हमले की जाँच के लिए, क्षेत्र के मौसम के अनुसार पत्तों को काट दें| अगर चेपे और तेले का हमला दिखाई दें तो, इमिडाक्लोप्रिड 50 मि.ली. या थिआमिथोकस्म 40 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें|

फसल की कटाई

यह फसल रोपाई के 120 दिनों के बाद पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। पुटाई मुख्य तौर पर गांठों के पकने पर और पत्तों के पीले रंग के होने पर की जाती है। गांठों की कटाई करने पर यदि यह हरे काले रंग की होती है तो गांठे पुटाई के लिए तैयार नहीं होती। पुटाई गांठों को उखाड़कर की जाती है। इसकी औसतन पैदावार 80-100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। पुटाई में देरी ना करें क्योंकि इससे आलू की भुंडी का खतरा बढ़ जाता है।

फसल की कटाई

खुदाई के बाद इन्हें क्यूरिंग उद्देश्य के लिए पांच से छ दिन छांव में रखें। उसके बाद साफ करें और गांठों की छंटाई करें।

खादें


free shipping

ORGANIC FERTILIZERS

free shipping

PESTICIDE &
INSECTICIDE

free shipping

ORGANIC FRESH SWEET POTATO

free shipping